जिस व्यक्ति ने अपने मन को निर्लोभी बना लिया है, संतोष धारण कर लिया है, उसका जीवन परम शांति को उपलब्ध हो जाता है
जो व्यक्ति उत्तम शौच धर्म को धारण करता है उसकी आत्मा लोभ ओर लालच जैसे मल का त्याग कर परम् उज्ज्वलता को प्राप्त होती है।
जैसे मन यदि काला है तो महँगे से महँगे इत्र भी केवल आपके शरीर को महका सकते है जो नश्वर है लेकिन आत्मा को सुंदर बनाने के लिए आत्मा के स्वभाव अनुरूप धर्मों का पालन करना चाहिए, उत्तम शोच आत्मस्वरूप का स्वभाव है🙏🌸
🌿 उत्तम शौच धर्म – संतोष और आंतरिक पवित्रता का प्रतीक
“शौच” का शाब्दिक अर्थ है — शुद्धता।
लेकिन यहाँ शौच का अर्थ केवल बाहरी स्वच्छता नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता, संतोष, लोभ से मुक्ति और आत्मा की निर्मलता है।
🪷 शौच के दो प्रकार:
बाह्य शौच: शरीर, वस्त्र, स्थान आदि की स्वच्छता।
आंतरिक शौच: मन, भावनाओं, विचारों की निर्मलता और संतोष की भावना।
📿 उत्तम शौच धर्म की विशेषताएँ:
मन, वचन, और काया से स्वच्छ और पवित्र बनना।
इच्छाओं को सीमित करना और जो प्राप्त है, उसमें संतुष्ट रहना।
लोभ, लालच और अधिक संग्रह की भावना को त्यागना।
स्वाभाविक और सरल जीवन जीना।
💡 प्रेरणादायक विचार:
“सच्चा संतोष ही सबसे बड़ा धन है।”
“शुद्ध मन ही मोक्ष का द्वार खोलता है।”
“जो कुछ मिला है, उसमें ईश्वर का आशीर्वाद समझकर संतुष्ट रहो।”
🔍 आत्मचिंतन के प्रश्न:
क्या मैं आवश्यकता से अधिक की लालसा करता हूँ?
क्या मेरे विचार और भावनाएँ स्वच्छ हैं?
क्या मैं वस्त्र, भोजन, धन आदि को लेकर असंतोष या लोभ करता हूँ?
📖 उदाहरण:
भगवान महावीर स्वामी ने घोर तप और संयम के साथ जीवन जीते हुए संतोष और आंतरिक शुद्धता का अनुपम आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने हर परिस्थिति में संतोष बनाए रखा।