दसलक्षण पर्व: उत्तम त्याग धर्म – आंतरिक शुद्धि का मार्ग
दसलक्षण पर्व जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र अवसर है, जो आत्म-शुद्धि और नैतिक उत्थान का संदेश देता है. इस दस दिवसीय पर्व के दौरान, जैन अनुयायी दस उत्तम धर्मों का पालन करते हैं, जिनमें से उत्तम त्याग धर्म का विशेष स्थान है. यह धर्म केवल भौतिक वस्तुओं के परित्याग से कहीं अधिक गहरा है; यह मन, वचन और कर्म से हर प्रकार के परिग्रह (आसक्ति) को छोड़ने का प्रतीक है.
त्याग का वास्तविक अर्थ
आम तौर पर त्याग का अर्थ किसी चीज़ को छोड़ देना समझा जाता है, लेकिन जैन धर्म में उत्तम त्याग धर्म का अर्थ अधिक व्यापक है. यह केवल धन-संपत्ति या सांसारिक वस्तुओं का भौतिक परित्याग नहीं है, बल्कि इनके प्रति मन में बसी आसक्ति, मोह और स्वामित्व की भावना का भी त्याग है. यह समझना कि कुछ भी स्थायी नहीं है और सब कुछ क्षणभंगुर है, त्याग की पहली सीढ़ी है.
उत्तम त्याग के प्रमुख आयाम
उत्तम त्याग धर्म कई स्तरों पर अभ्यास किया जाता है:
- परिग्रह त्याग: यह सबसे स्पष्ट रूप है, जिसमें अनावश्यक वस्तुओं, धन और संपत्ति के संग्रह से बचना शामिल है. इसका उद्देश्य आवश्यकताओं को सीमित करना और संग्रह की प्रवृत्ति को कम करना है.
- अहंकार और अभिमान का त्याग: मनुष्य के भीतर अहंकार और अभिमान ही उसकी आत्मा को बांधते हैं. उत्तम त्याग इन मानसिक विकारों को छोड़ने पर जोर देता है, जिससे व्यक्ति नम्र और विनयशील बनता है.
- कषायों का त्याग: क्रोध, मान (अभिमान), माया (छल) और लोभ (लालच) – ये चार कषाय हैं जो आत्मा को मैला करते हैं. उत्तम त्याग इन कषायों पर विजय प्राप्त करने और उनसे मुक्त होने का मार्ग दिखाता है.
- शरीर के प्रति आसक्ति का त्याग: शरीर नश्वर है और आत्मा से भिन्न है. उत्तम त्याग शरीर के प्रति अत्यधिक मोह और उससे जुड़ी वासनाओं को कम करने की शिक्षा देता है, जिससे आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप का अनुभव हो सके.
- विषय-वासनाओं का त्याग: इंद्रियों के सुखों (जैसे स्वाद, स्पर्श, गंध, रूप और शब्द) के प्रति अत्यधिक आसक्ति भी त्यागने योग्य है. यह इंद्रिय संयम के माध्यम से प्राप्त होता है, जिससे मन शांत और एकाग्र होता है.
त्याग का महत्व
उत्तम त्याग धर्म का पालन करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, संतोष और आंतरिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है. यह आत्मा को कर्मों के बंधन से मुक्त करने और मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होने में सहायक होता है. जब व्यक्ति बाहरी वस्तुओं और आंतरिक विकारों के प्रति अपनी आसक्ति छोड़ देता है, तो वह अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान पाता है और परम आनंद की अनुभूति करता है.
दसलक्षण पर्व के दौरान उत्तम त्याग धर्म का अभ्यास हमें यह सिखाता है कि सच्चा सुख वस्तुओं को पाने में नहीं, बल्कि उन्हें छोड़ने में है. यह हमें एक अधिक सात्विक, संतुलित और आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है.