तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ का जीवन परिचय
भगवान सुमतिनाथ(Sumatinath) जी वर्तमान काल के पांचवें तीर्थंकर थे। तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें, जो संसार सागर(जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। सुमतिनाथ स्वामी का जन्म इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में चैत्र शुक्ल ११ को हुआ था। अयोध्या में जन्मे सुमतिनाथ जी की माता सुमंगला और पिता मेघरथ थे।
केवल ज्ञान की प्राप्ति
छद्मस्थ अवस्था में बीस वर्ष बिताकर सहेतुक वन में प्रियंगु वृक्ष के नीचे चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन केवलज्ञान को प्राप्त किया। इनकी सभा में एक सौ सोलह गणधर, तीन लाख बीस हजार मुनि, अनन्तमती आदि तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक और पाँच लाख श्राविकाएँ थीं।
सुमतिनाथ भगवान का इतिहास
- भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह चकवा है।
- जन्म स्थान –अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
- जन्म कल्याणक – चैत्र शुक्ल ११
- केवल ज्ञान स्थान – चैत्र शुक्ला ११(अयोध्या)
- दीक्षा स्थान – सहेतुक वन,अयोध्या
- पिता –मेघरथ
- माता –सुमंगला
- देहवर्ण – स्वर्ण
- भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
- लंबाई/ ऊंचाई- ३०० धनुष (९०० मीटर)
- आयु –४०,००,००० पूर्व
- वृक्ष – प्रियंगु वृक्ष
- यक्ष – तुम्बरु
- यक्षिणी –पुरुषदत्ता देवी
- प्रथम गणधर – वज्रसेन (अमर वज्र)
- गणधरों की संख्या – 116
🙏 सुमतिनाथ का निर्वाण
अन्त में भगवान ने सम्मेदाचल पर पहुँचकर एक माह तक प्रतिमायोग से स्थित होकर चैत्र शुक्ला एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में शाम के समय निर्वाण प्राप्त किया।
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Note
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