“आत्मा अनंत गुणों का धनी” एक अत्यंत प्रेरणादायक जैन भजन है, जो आत्मा की वास्तविक महिमा और उसकी दिव्यता को उजागर करता है। यह भजन हमें यह स्मरण कराता है कि हमारी आत्मा कोई साधारण तत्व नहीं, बल्कि वह अनंत ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख और शक्ति जैसे अनगिनत गुणों से परिपूर्ण है — बस आवश्यकता है इन गुणों को पहचानने और जागृत करने की।
इस भजन में आत्मा को केंद्र में रखकर बताया गया है कि यदि हम अपने भीतर झाँकेँ, तो वहाँ कोई सीमा नहीं — बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता, पवित्रता और अपार शक्ति छुपी हुई है। यह भजन अहंकार या मोह नहीं, बल्कि आत्म-जागरण की भावना से भरा होता है, जो व्यक्ति को संसार से ऊपर उठकर आत्मस्वरूप की ओर ले जाता है।
“आत्मा अनंत गुणों का धनी” भजन विशेष रूप से स्वाध्याय, ध्यान, आत्मचिंतन, और साधना शिविरों में आत्मबल को जाग्रत करने हेतु गाया जाता है।
तर्ज – रिश्तो के भी रूप बदलते है…क्योकि सास भी कभी बहू थी।
पल पल जीवन बीता जाता है, बीता फल नहीं वापस आता है ।
लोभ मोह में तू भरमाया है, सपनों का संसार सजाया है ।।
ये सब छलावा है, ये सब भुलावा है ।
कर ले तू चिंतन अभी ।।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
सबको ही सिद्धालय जाना है, सबको ही पुरषार्थ जगाना है।
सुख दुःख दाता कोई नहीं जग मैं, दोष किसी को लगाना है।
समता अपनाना है, ममता हटाना है।
आशा न करना कोई।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
कोई कब भगवन बन जायेगा, अरे देखता जग रह जायेगा।
अंजन जैसे हुए निरंजन रे, किसका गौरव कब जग जायेगा।
सबको भगवन जानो, सिद्धो ने समानो।
अशरीरी प्रभु है सभी।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
कितनो को सिद्धालय जाना है, कितनो का अभी काम बकाया है।
बंधन किसने कैसा बांधा है, आराधन में कैसे बांधा है।
अनमोल जीवन है, फिर मिलना मुश्किल है।
सुन लो चेतन की ध्वनि।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
समझाने से समझ नहीं आता, जब समझे तब स्वयं समझ जाता ।
दिव्य ध्वनि भी किसे जगाती है, स्वयं जागरण हो तब भाती है ।।
तीर्थंकर समझाया, मारीची बौराया ।
माने क्या किसकी कोई ।।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
अनहोनी क्या कभी भी होती है, होनी भी तो कभी न टलती है ।
काललब्धी जिसकी आजाती है, बात समझ में तब ही आती है ।।
किसको समझाना है, किसको जगाना है ।
पहले तू जग जा खुद ही ।।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
साधर्मी से भी न बहस करना, और विधर्मी संग भी चुप रहना ।
बुद्धू बन कर चुप रह जाओगे, बहुत विवादों से बच जाओगे ।।
जीवन दो दिन का है, मौका निज हित का है ।
आवे न अवसर यूं ही ।।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
कोई बड़प्पन में ही मरते है, अपने को अंग्रेज समझते है।
अभिनिवेक्षा से ये सताता है, पक्षपात में जीव दुःख पाता है।
कैसी ये भटकन है, कैसी ये उलझन है।
कैसे ये सुलझे गुत्थी।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
हमको तो निज रूप निरखना है, अनुभव करभव सागर तिरना है।
मुक्ति की ये रीत पुरानी है, केवल ने अनुभव से प्रमाणी है।
निज के अवलंबन से, सुख की प्राप्ति होगी।
शाश्वत है मार्ग यही।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।

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Note
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