तीर्थंकर भगवान अभिनन्दननाथ का जीवन परिचय
जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर भगवान अभिनन्दननाथ(Abhinandannath) हैं। भगवान अभिनन्दननाथ जी को अभिनन्दन स्वामी के नाम से भी जाना जाता है। अभिनन्दननाथ स्वामी का जन्म इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को हुआ था। अयोध्या में जन्मे अभिनन्दननाथ जी की माता सिद्धार्था देवी और पिता राजा संवर थे। इनका वर्ण सुवर्ण और चिह्न बंदर था। इनके यक्ष का नाम यक्षेश्वर और यक्षिणी का नाम व्रजशृंखला था। अपने पिता की आज्ञानुसार अभिनन्दननाथ जी ने राज्य का संचालन भी किया। लेकिन जल्द ही उनका सांसारिक जीवन से मोह भंग हो गया
केवल ज्ञान की प्राप्ति
छद्मस्थ अवस्था के अठारह वर्ष बीत जाने पर दीक्षा वन में असन वृक्ष के नीचे बेला का नियम लेकर ध्यानारूढ़ हुए। पौष शुक्ल चतुर्दशी के दिन शाम के समय पुनर्वसु नक्षत्र में उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। इनके समवसरण में वज्रनाभि आदि एक सौ तीन गणधर, तीन लाख मुनि, मेरुषेणा आदि तीन लाख तीस हजार छह सौ आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएँ, असंख्यातों देव-देवियाँ और संख्यातों तिर्यंच बारह सभा में बैठकर धर्मोपदेश श्रवण करते थे।
अभिनन्दननाथ भगवान का इतिहास
- भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह बंदर है।
- जन्म स्थान –अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
- जन्म कल्याणक – माघ शुक्ल द्वादशी
- केवल ज्ञान स्थान – अयोध्या
- दीक्षा स्थान –अयोध्या
- पिता – श्री संवर राजा
- माता – श्री सिद्धार्था देवी
- देहवर्ण- स्वर्ण
- भगवान का वर्ण- क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
- लंबाई/ ऊंचाई- ३५० धनुष (१०५० मीटर)
- आयु – ५०,००,००० पूर्व
- वृक्ष –असन वृक्ष
- यक्ष – यक्षेश्वर
- यक्षिणी –वज्रश्रृंखला देवी
- प्रथम गणधर – वज्रानाभी
- गणधरों की संख्या – 103
🙏 अभिनन्दननाथ का निर्वाण
इन अभिनन्दननाथ भगवान ने अन्त में सम्मेदशिखर पर पहुँचकर एक महीने का प्रतिमायोग लेकर वैशाख शुक्ला षष्ठी के दिन प्रात:काल के समय अनेक मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया।
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