bhagwan mallinath

तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ का जीवन परिचय

मल्लिनाथ जी(Bhagwan Mallinath) उन्नीसवें तीर्थंकर है। जिन धर्म भारत का प्राचीन सम्प्रदाय हैं जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ जी का जन्म मिथिलापुरी के इक्ष्वाकुवंश में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी को अश्विन नक्षत्र में हुआ था। इनके माता का नाम माता रक्षिता देवी और पिता का नाम राजा कुम्भराज था। इनके शरीर का वर्ण नीला था जबकि इनका चिन्ह कलश था। इनके यक्ष का नाम कुबेर और यक्षिणी का नाम धरणप्रिया देवी था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान श्री मल्लिनाथ जी स्वामी के गणधरों की कुल संख्या 28 थी, जिनमें अभीक्षक स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।

केवल ज्ञान की प्राप्ति

19 वें तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने मिथिलापुरी में मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को दीक्षा की प्राप्ति की थी और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारण किया था। दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् एक दिन-रात तक कठोर तप करने के बाद भगवान श्री मल्लिनाथ जी को मिथिलापुरी में ही अशोक वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी। 

भगवान मल्लिनाथ का इतिहास

  • भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह कलश है।
  • जन्म स्थान – मिथिलानगरी
  • जन्म कल्याणक – मगसिर शु.११
  • केवल ज्ञान स्थान – पौष कृ. २, श्वेतवन
  • दीक्षा स्थान – श्वेतवन
  • पिता – महाराजा कुंभराज
  • माता – महारानी प्रजावती
  • देहवर्ण – तप्त स्वर्ण सदृश
  • मोक्ष – फाल्गुन शु. ५, सम्मेद शिखर पर्वत
  • भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
  • लंबाई/ ऊंचाई- 40 धनुष
  • आयु – पचपन हजार (५५०००) वर्ष
  • वृक्ष – अशोक वृक्ष
  • यक्ष – कुबेर देव
  • यक्षिणी – अपराजिता देवी
  • प्रथम गणधर – श्री विशाख
  • गणधरों की संख्या – 28

🙏 मल्लिनाथ का निर्वाण

भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने हमेशा सत्य और अहिंसा का अनुसरण किया और अनुयायियों को भी इसी राह पर चलने का सन्देश दिया। फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को 500 साधुओं के संग इन्होनें सम्मेद शिखर पर निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त किया था।

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Note

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