suparshvnath bhagwan

तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभ का जीवन परिचय

भगवान सुपार्श्वनाथ(suparshvnath) वर्तमान अवसर्पिणी काल के सातवें तीर्थंकर थे। इनका जन्म वाराणसी के इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था। बनारस नाम की नगरी थी उसमें सुप्रतिष्ठित महाराज राज्य करते थे। उनकी पृथ्वीषेणा रानी के गर्भ में भगवान भाद्रपद शुक्ल षष्ठी के दिन आ गये। अनन्तर ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी के दिन उस अहमिन्द्र पुत्र को उत्पन्न किया। इन्द्र ने जन्मोत्सव के बाद सुपार्श्वनाथ नाम रखा।

केवल ज्ञान की प्राप्ति

छद्मस्थ अवस्था के नौ वर्ष व्यतीत कर फाल्गुन कृष्ण षष्ठी के दिन केवलज्ञान प्राप्त किया।

पद्मप्रभ भगवान का इतिहास

  • भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह स्वास्तिक है।
  • जन्म स्थान –काशी (बनारस)
  • जन्म कल्याणक – ज्येष्ठ शु. १२
  • केवल ज्ञान स्थान –सहेतुक वन
  • दीक्षा स्थान –सहेतुक वन
  • पिता –महाराजा सुप्रतिष्ठ
  • माता –महारानी पृथ्वीषेणा
  • देहवर्ण –स्वर्ण
  • मोक्ष – फाल्गुन कृ.७, सम्मेद शिखर पर्वत
  • भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
  • लंबाई/ ऊंचाई- २०० धनुष (६०० मीटर)
  • आयु –2०,००,००० पूर्व
  • वृक्ष –शिरीष वृक्ष
  • यक्ष –वरनंदिदेव
  • यक्षिणी –काली देवी
  • प्रथम गणधर –श्रीबल
  • गणधरों की संख्या – 95

🙏 पद्मप्रभ का निर्वाण

आयु अन्त के एक माह पहले सम्मेदशिखर पर जाकर एक माह का प्रतिमायोग लेकर फाल्गुन कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय मोक्ष को चले गये।

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Note

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