तीर्थंकर भगवान विमलनाथ का जीवन परिचय
रानी जयश्यामा ने ज्येष्ठ कृ.१० के दिन उस आरणेन्द्र को गर्भ में धारण किया एवं माघ शुक्ल 4 के दिन भगवान विमलनाथ(Vimalnath) को जन्म दिया।
पश्चिम धातकीखंड द्वीप में मेरू पर्वत से पश्चिम की ओर सीता नदी के दक्षिण तट पर रम्यकावती नाम का एक देश है। उसके महानगर में पद्मसेन राजा राज्य करता था। किसी एक दिन राजा पद्मसेन ने प्रीतिंकर वन में स्वर्गगुप्त केवली के समीप धर्म का स्वरूप जाना और यह भी जाना कि ‘मैं तीसरे भव में तीर्थंकर होऊँगा।’ उस समय उसने ऐसा उत्सव मनाया कि मानों मैं तीर्थंकर ही हो गया हूँ। अनन्तर सोलहकारण भावनाओं द्वारा तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर लिया। अन्त में सहस्रार स्वर्ग में सहस्रार इन्द्र हो गया।
केवल ज्ञान की प्राप्ति
जब तपश्चर्या करते हुए तीन वर्ष बीत गये, तब भगवान दीक्षावन में जामुन वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ होकर घातिया कर्मों का नाशकर माघ शुक्ल षष्ठी के दिन केवली हो गये।
भगवान विमलनाथ का इतिहास
- भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह सूकर है।
- जन्म स्थान – कांपिल्यपुरी (कंपिलाजी) जि. फरूक्खाबाद
- जन्म कल्याणक – माघ शु. ४
- केवल ज्ञान स्थान – सहेतुक वन
- दीक्षा स्थान – सहेतुक वन
- पिता – महाराजा कृतवर्मा
- माता – महारानी जयश्यामा
- देहवर्ण – तप्त स्वर्ण
- मोक्ष – आषाढ़ कृ. ८, सम्मेद शिखर पर्वत
- भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
- लंबाई/ ऊंचाई- 60 धनुष (१८० मीटर)
- आयु – ६०,००,००० वर्ष
- वृक्ष –जामुन वृक्ष
- यक्ष – पाताल देव
- यक्षिणी – वैरोटी देवी
- प्रथम गणधर – श्रीमंदर
- गणधरों की संख्या – 55
🙏 विमलनाथ का निर्वाण
अन्त में सम्मेदशिखर पर जाकर एक माह का योग निरोध कर आठ हजार छह सौ मुनियों के साथ आषाढ़ कृष्ण अष्टमी के दिन सिद्धपद को प्राप्त हो गये।
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Note
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