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रेवती छन्द

विमल जिन बारवां दिवि तज, कम्पिला नगर में आये।
मातु जयश्यामा कृतधर्मा, पिता जिन बाल को पाये॥
जगत आनन्द में डूबा, खुशी के गीत सब गाये।
बने सर्वज्ञ तीर्थंकर, पूजने हम हृदय लाये
ओं ह्रीं तीर्थंकरविमलनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ।

नीर प्रासुक कनक घट में, पूजने नाथ भर लाये ।
तृषा का रोग मिट जाये, विमल पादाब्ज मन भाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

मलय चन्दन घसा जल संग, कटोरी में सु भर लाये ।
देह भव ताप मिट जाये, विमल मम चित्त अकुलाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।

चन्द्रकर सम सुअक्षत का, पुञ्ज भर हाथ में लाये ।
मनोरथ पूर्ण हो मेरा, विमल जिन! मोक्ष मुझ भाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।

बहुत से सुमन धरती पर, किन्तु मन सुमन कर लाये।
यही मन सुमन अर्पित है, विमल जिन! काम नश जाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

नव्य रस पूर चरु तजने, विमल जिन पाद में आये ।
प्राकृतिक अर्पते नेवज, अशन जल त्याग मन भाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

रत्न दीपक चढ़ाने का भाव मन में सजा लाये।
गाय घृतदीप जिन पद में चढ़ाते मोहतम जाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

तगर घनसार शुचि चूरण, कर्म वसु जारने लाये ।
विमल जिन नाथ तीर्थंकर, पूज मन गुण सुरभि पाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण मे लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

तगर घनसार शुचि चूरण, कर्म वसु जारने लाये ।
विमल जिन नाथ तीर्थंकर, पूज मन गुण सुरभि पाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

मधुर रसदार फल त्यागे, तभी जिन नाथ बन पाये। ॥
चढ़ाते शुद्ध शुचि फल को, मोक्ष फल ही मुझे भाये ॥
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

सुखद प्रिय मूल्य वसु द्रव्यें, चढ़ाने नाथ लाये हैं।
मिले अष्टम अवनि स्वामी, जहाँ बहु सिद्ध गाये हैं |
विमल जिनराज तीर्थंकर, विमलता दीजिए मुझको।
पतित आतम बने पावन, शरण में लीजिए मुझको ॥
ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पंचकल्याणक अर्घ-दोहा

सहस्त्रार दिवि से उतर, गरभागम कल्याण ।
दशमी कृष्णा ज्येष्ठ की, उत्तराभाद्र महान ॥
ओं ह्रीं ज्येष्ठकृष्णदशम्यां गर्भकल्याणमण्डित श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घं।

माघ चतुर्थी शुक्ल को, जन्म विमल भगवान ।
सुरपति ने उत्सव किये, नगर कम्पिला आन ॥
ओं ह्रीं माघशुक्लचतुर्थ्यां जन्मकल्याणमण्डित श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्थं।

जन्म दिवस नक्षत्र को, दीक्षा ली वन जाय ।
सहस्त्र नृप दीक्षित हुए, प्रभु मनपर्यय पाय ॥
ओं ह्रीं माघशुक्लचतुर्थ्यां तपः कल्याणमण्डित श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घं।

माघ सिता षष्ठी दिवस, पाया केवलज्ञान ।
धर्म सभा निर्मित हुई, कुबेर कृत गुणखान ॥
ओं ह्रीं माघशुक्लषष्ठ्यां ज्ञानकल्याणमण्डित श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घं।

आषाढ़ी सित अष्टमी, विमलनाथ भगवान ।
वसु हजार छह सौ श्रमण, पहुँचे शिवपुर थान ॥
ओं ह्रीं आषाढ़ शुक्लाष्टम्यां मोक्षकल्याणमण्डित श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घं।

जयमाला (यशोगान)

वर्ष तीस सागर गये, चतुर्थांश पल्यान्त ।
तब तीर्थंकर विमल जिन, जन्मे करें भवान्त ॥

नमस्ते छन्द

विमलनाथ भगवन्त नमस्ते, ऋषभ वंश अवतंस नमस्ते ।
प्राप्त पंच कल्याण नमस्ते, चउतिस अतिशयवान नमस्ते ॥
स्वप्न पूर्व गर्भस्थ नमस्ते, तीर्थंकर पद प्राप्त नमस्ते ।
सुरगिरि पर संस्नात नमस्ते, लौकान्तिक थुति प्राप्त नमस्ते ॥
षष्टि लक्ष वर्षायु नमस्ते, षष्टि धनुष उत्तुंग नमस्ते ।
समवसरण थित विमल नमस्ते, द्वादश गण उडु चन्द्र नमस्ते ॥
हिम विलीन वैराग्य नमस्ते, बेला अनशन प्राप्त नमस्ते ।
सहस्त्र नृप सह साधु नमस्ते, पचपन गणधर स्वामि नमस्ते ॥
मन्दरादि गण अधिप नमस्ते, पद्मार्या गण अधिप नमस्ते ।
अड़सठ सहस मुनीश नमस्ते, सम्मेदाचल ईश नमस्ते ॥
सुर नर वन्दित आप्त नमस्ते, इन्द्र महोत्सव प्राप्त नमस्ते ।
मुक्ति प्राप्त परमेश नमस्ते, मृदु गुणधर तीर्थेश नमस्ते ॥
ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये पूर्णाधं निर्वपामीति स्वाहा।

दोहा
शूकर लक्षण पाद में विमलनाथ पहचान ।
विद्यासागर सूरि से, मृदुमति पाती ज्ञान ॥
॥ इति शुभम् भूयात् ॥

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Note

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