ज्ञान सम्यक मेरा हो गया,
मिथ्याभ्रम का अन्धेरा विलय हो गया ।
दृष्टि एकान्त की ही बनी थी मेरी,
और अनेकान्त से बेखबर मैं रहा
स्याद्वादी सहज हो गया,
ज्ञान में ज्ञान का ज्ञान अब हो गया ॥१॥
माना अपना उसे जो ना अपना हुआ,
जो था अपना उसी से पराया रहा
भेदविज्ञान अब हो गया,
एक अभेद की धारा में, मैं बह गया ॥२॥
वीतरागी प्रभु, वीतरागी गुरु,
मोक्ष की मानो, तैयारी हो गयी शुरू
धन्य नरभव, मेरा हो गया,
राग जाने न जाने कहाँ खो गया ॥३॥
दृष्टि में आतमा भक्ति परमात्मा
ऐसी आराधना हो सिद्धात्मा,
मार्ग ऐसा मुझे मिल गया
मानो भव के भ्रमण के हरण हो गया ॥४॥
ज्ञान सम्यक मेरा हो गया,
मिथ्याभ्रम का अन्धेरा विलय हो गया।
- ये भी पढे – साधना के रास्ते, आत्मा के वास्ते चल रे Jain Bhajan
- ये भी पढे – मोक्ष के प्रेमी हमने, कर्मों से लड़ते देखें Jain Bhajan
- ये भी पढे – जहाँ नेमी के चरण पड़े, गिरनार वो धरती है Jain Bhajan
- ये भी पढे – मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूं Jain Bhajan
- ये भी पढे – अमृत से गगरी भरो, कि न्हवन प्रभु आज Jain Bhajan
Note
Jinvani.in मे दिए गए सभी Jain Bhajan – ज्ञान सम्यक मेरा हो गया स्तोत्र, पुजाये और आरती जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है।