जिनवाणी स्तुति जैन धर्म की पवित्र वाणी के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रकट करने का माध्यम है। इसमें जिनवाणी को सत्य, ज्ञान, और मोक्ष का मार्गदर्शन करने वाली परम पवित्र शक्ति माना गया है। जिनवाणी की स्तुति से मन शुद्ध होता है, आंतरिक शांति मिलती है और आत्मा को मोक्ष की प्रेरणा मिलती है।
Jain Jinvani Stuti एक पावन भक्ति रचना है जो भगवान जिनेंद्र की दिव्य वाणी की महिमा का गान करती है। जिनवाणी को जैन धर्म में मोक्ष का मार्गदर्शक माना गया है, जो सत्य, अहिंसा, और आत्मशुद्धि की ओर प्रेरित करती है। यह स्तुति श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है और आत्मबोध की दिशा में मार्गदर्शन करती है।
जिनवाणी केवल शब्द नहीं, बल्कि आत्मा के उत्थान का माध्यम है। इस स्तुति के पाठ से साधक को ज्ञान, संयम और करुणा जैसे गुणों की प्राप्ति होती है। Jain Jinvani Stuti जैन धर्म की गूढ़ शिक्षाओं को सरल शब्दों में प्रस्तुत करती है और हर जैन श्रद्धालु के लिए प्रेरणास्रोत है।
जिनवाणी स्तुति
मिथ्यातम नाश वे को, ज्ञान के प्रकाश वे को,
आपा पर भास वे को, भानु सी बखानी है॥
छहों द्रव्य जान वे को, बन्ध विधि मान वे को,
स्व-पर पिछान वे को, परम प्रमानी है॥
अनुभव बताए वे को, जीव के जताए वे को,
काहूं न सताय वे को, भव्य उर आनी है॥
जहां तहां तार वे को, पार के उतार वे को,
सुख विस्तार वे को यही जिनवाणी है॥
जिनवाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,
सो वाणी मस्तक धरों, सदा देत हूं धोक॥
है जिनवाणी भारती, तोहि जपूं दिन चैन,
जो तेरी शरण गहैं, सो पावे सुखचैन॥
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