“कितना प्यारा तेरा द्वारा” एक अत्यंत मधुर और भावनात्मक जैन भजन है, जो भक्त और भगवान के बीच के आत्मिक संबंध को दर्शाता है। यह भजन उस पावन स्थल की महिमा का गुणगान करता है, जहाँ आत्मा को शांति, सुरक्षा और मोक्ष की अनुभूति होती है।
जब कोई भक्त मंदिर के द्वार पर पहुँचता है, तो उसका हृदय श्रद्धा, भक्ति और आनंद से भर उठता है — यही भावना इस Jain Bhajan में बड़े ही सुंदर और सरल शब्दों में प्रकट की गई है। यह रचना न केवल एक भक्ति गीत है, बल्कि आत्मा की आंतरिक यात्रा का सार है, जो हर श्रद्धालु को आत्मकल्याण की ओर प्रेरित करती है।
Kitna Pyara Tera Duara Jain Bhajan
कितना प्यारा तेरा दुआरा,
यही बिता दूं जीवन सारा
तेरी दरश की लगन से,
हमें आना पड़ेगा इस दर पर दोबारा।
भव-भव के दुख हरने वाले,
सबको सुख में करने वाले,
गुण में तेरी धारा हमें…..
दिनभर तेरी याद सताती,
छवी तेरी दिल में आ जाती,
तेरी अनुपम धारा, हमें…..
रात-रात भर नींद न आती,
सपनों में पूजा हो जाती,
कैसा अद्भुत नजारा, हमें….
कमलो को विकसाने वाले,
धर्म प्रकाश दिखाने वाले,
तू ही जग उजियारा, हमें…..
प्रभु तुम से अब कुछ नहीं चाहुँ।
जनम-जनम तेरे दर्शन पाऊँ,
मन में यही विचारा, हमें…..
भव्य जनों के हृदय खिलाते,
जो भी तेरे दर पर आते,
तू ही अजब सितारा, हमें…..
विष को निर्विष करने वाले,
राग-द्वेष को तजने वाले,
अन्जन पापी तारा, हमें…..
नैया मोरी पार लगाओ,
हमको अपने पास बुलाओ,
तू ही हमको प्यारा, हमें…..
वीतरागता हमें दिखा दो,
मुझसे मेरा मिलन करा दो,
तूने सब को तारा, हमें…..
तुम ही हो बस एक सहारे,
जग में रहते जग से न्यारे,
देना जगत किनारा, हमें…..
वीतरागता है झर-झर झरती,
तुझे देख खुश होते नगरी,
तू ही अजब सितारा, हमें…..
महावीर जिन संकट हारी,
नैया सबकी पार उतारी,
भव का दुःख निवारा, हमें…..
नर सुर इन्द्र करे सब पूजा,
और नहीं है कुछ भय दूजा,
तुझमें ज्ञान आपारा, हमें…..
अपनी जैसी दृष्टि बनाओ,
जिन गुण संपत्ति हमें दिखाओ,
देकर हाथ सहारा, हमें…..
पापी भी यदि ध्यान लगावे,
भव-भव के बंधन कट जावे,
अंजन को भी तारा, हमें…..
प्रभु चरणों में ध्यान लगाऊँ,
निज आतम हित में लग जाऊँ,
नरतन मिले दुबारा, हमें…..
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