“रोम-रोम पुलकित हो जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय” एक अत्यंत भावनात्मक Jain Bhajan है जो उस अनुपम आनंद की अनुभूति को व्यक्त करता है, जब भक्त को जिनेंद्रदेव के दर्शन प्राप्त होते हैं। यह भजन हमें जिनेंद्र भगवान के दर्शन के महत्व को समझाता है और बताता है कि दर्शन मात्र से ही जीव के भीतर श्रद्धा, शुद्धता और समता का संचार हो सकता है।
यह भजन उस दिव्य क्षण का चित्रण करता है जब आत्मा प्रभु की प्रतिमा को देखकर भीतर से हर्षित और पुलकित हो उठती है।भक्त की अनुभूति यहाँ केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक स्तर पर होती है — रोम-रोम में एक प्रकार की कंपन, एक अपूर्व शांति और आंतरिक प्रकाश की अनुभूति होती है। दर्शन मात्र से आत्मा के अज्ञान का अंधकार हटने लगता है और भीतर भक्ति की लौ जल उठती है।
Bhajan Lyrics
रोम-रोम पुलकित हो जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय।
ज्ञानानन्द कलियाँ खिल जाँय, जब जिनवर के दर्शन पाय।
जिनमन्दिर में श्री जिनराज, तनमन्दिर में चेतनराज।
तन-चेतन को भिन्न-पिछान, जीवन सफल हुआ है आज ॥
वीतराग सर्वज्ञ देव प्रभु, आये हम तेरे दरबार।
तेरे दर्शन से निज दर्शन, पाकर होवें भव से पार।
मोह-महातम तुरत विलाय, जब जिनवर के दर्शन पाय॥(1)
दर्शन-ज्ञान अनन्त प्रभु का, बल अनन्त आनन्द अपार।
गुण अनन्त से शोभित है प्रभु, महिमा जग में अपरम्पार॥
शुद्धातम की महिमा आय, जब जिनवर के दर्शन पाय॥(2)
लोकोलोक झलकते जिसमें, ऐसा प्रभु का केवलज्ञान।
लीन रहें निज शुद्धातम में, प्रतिक्षण हो आनन्द महान ॥
ज्ञायक पर दृष्टी जम जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय॥(3)
प्रभु की अन्तर्मुख-मुद्रा लखि, परिणति में प्रगटे समभाव।
क्षणभर में हों प्राप्त विलय को, पर-आश्रित सम्पूर्ण विभाव।
रत्नत्रय-निधियाँ प्रगटाय, जब जिनवर के दर्शन पाय॥(4)

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