Acharya Shri Vidhya Sagar Ji Maharaj

श्रावक-प्रतिक्रमण (लघु) | Shravak Pratikraman Laghu

ॐ नमः सिद्धेभ्यः| ॐ नमः सिद्धेभ्यः| ॐ नमः सिद्धेभ्यः|
चिदानन्दैकरुपाय जिनाय परमात्मने|
परमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः||

अर्थ – उन श्री जिनेन्द्र परमात्मा सिद्धत्मा को नित्य नमस्कार है जो चिदानन्द रुप हैं, अष्ट कर्मों को जीत चुके हैं, परमात्मा स्वरुप हैं और परमात्मा तत्त्व को प्रकाशित करने वाले हैं|पाँच मिथ्यात्व, बारह अवत, पन्द्रह योग, पच्चीस कषाय इस प्रकार सत्तावन आस्रव का पाप लगा हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे|

नित्य निगोद सात लाख, इतर निगोद सात लाख, पृथ्वीकाय सात लाख, जलकाय सात लाख, अग्निकाय सात लाख, वायुकाय सात लाख, वनस्पतिकाय दस लाख, दो इन्द्रिय दो लाख, तीन इन्द्रिय दो लाख, चार इन्द्रिय दो लाख, नरकगति चार लाख, तिर्यंचगति चार लाख, देवगति चार लाख, मनुष्यगति चौदह लाख ऐसी चौरासी लाख मातापक्ष में चौरासी लाख योनियाँ, एवं पितापक्ष में एक सौ साढ़े निन्याणवे लाख कुल कोटि, सूक्ष्म-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त भेद रुप जो किसी जीव की विराधना की हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे|

तीन दण्ड, तीन शल्य, तीन गारव, तीन मूढ़ता, चार आर्त्तध्यान, चार रौद्रध्यान, चार विकथा – इन सबका पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे|व्रत में, उपवास में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार का पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे|

पंच मिथ्यात्व, पंच स्थावर, छह त्रस-घात, सप्तव्यसन, सप्तभय, आठ मद, आठ मूलगुण, दस प्रकार के बहिरंग परिग्रह, चौदह प्रकार के अन्तरंग परिग्रह सम्बन्धी पाप किये हों वह सब पाप मिथ्या होवे|

पन्द्रह प्रमाद, सम्यक्त्वहीन परिणाम का पाप लगा हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे | हास्यादि, विनोदादि दुष्परिणाम का, दुराचार, कुचेष्टा का पाप लगा हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे|

हिलते, डोलते, दौड़ते-चलते, सोते-बैठते, देखे, बिना देखे, जाने-अनजाने, सूक्ष्म व बादर जीवों को दबाया हो, डराया हो, छेदा हो, भेदा हो, दुःखी किया हो, मन-वचन-काय कृत मेरा वह सब पाप मिथ्या हो|

मुनि, आर्यिका, श्राविका रुप चतुर्विध संघ की, सच्चे देव शास्त्र गुरु की निन्दा कर अविनय का पाप किया हो मेरा सब पाप मिथ्या होवे| निर्माल्य द्रव्य का पाप लगा हो, मेरा सब पाप मिथ्या होवे | मन के दस, वचन के दस, काया के बारह ऐसे बत्तीस प्रकार के दोष सामायिक में दोष लगे हों, मेरे वे सब पाप मिथ्या होवे | पाँच इन्द्रियों व छठे मन से जाने-अनजाने जो पाप लगा हो, मेरा सब पाप मिथ्या होवे|

मेरा किसी के साथ वैर-विरोध, राग-द्वेष, मान, माया, लोभ, निन्दा नहीं, समस्त जीवों के प्रति मेरी उत्तम क्षमा है|
मेरे कर्मों के क्षय हों, मुझे समाधिमरण प्राप्त हो, मुझे चारों गतियों के दुःखो से मुक्तिफल मिले|

ॐ शान्तिः! ॐ शान्तिः! ॐ शान्तिः!

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Note

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प्रतिक्रमण कितने प्रकार के होते हैं?

प्रतिक्रमण दो प्रकार के होते है – श्रावक प्रतिक्रमण और श्रावक प्रतिक्रमण (लघु)

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Swarn Jain

My name is Swarn Jain, A blog scientist by the mind and a passionate blogger by heart ❤️, who integrates my faith into my work. As a follower of Jainism, I see my work as an opportunity to serve others and spread the message of Jainism.

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