(अडिल्ल छन्द)
ह्रूं कार अक्षरात्मक देव जो ध्यावते |
देव मनुष्य पशु कृत सो व्याधि नशावते ||
कांसी तांबे पत्र पे शुद्ध लिखावते |
केशर चंदन तापर गंध रचावते ||
(दोहा)
ऐसे अनुपम-यंत्र को, मन वच काय संभार |
जे भवि पूजें प्रीति धर, हों भवदधि से पार ||१||
यंत्र-स्थापना (चाल जोगीरासा)
है महिमा को थान शुद्ध वर-यंत्र कलिकुंड जानो |
डाकिनि शाकिनि अगनि चोर भय नाशत सब दु:ख खानो ||
नवग्रहों का सब दु:ख नाशो रवि-शनि आदि पिछानो |
तिनका मैं स्थापन करहूँ त्रिविध-योग मन लानो ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंडदंडश्रीपार्श्वनाथ धरणेन्द्रपद्मावती सेवित अतुलबल-वीर्य-पराक्रमयुक्त सर्वविघ्न-विनाशक ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् (आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंडदंडश्रीपार्श्वनाथ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंडदंडश्रीपार्श्वनाथ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)
अथाष्टक (छन्द त्रिभंगी)
गंगा का नीरं, अति ही शीरं, गंध गहीरं मेल सही |
भरि कंचनझारी, आनंदधारी, धार करो मनप्रीति लही ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं जन्म-जरा-मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।
क्षीरोदधि नंदन, मलया चंदन, केशर और कर्पूर घसो |
भर सुवरण कलशा, मन अति हुलसा, भय व ताप का दु:ख नशो ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।
शशि-सम उजियारो, तंदुल प्यारो, अणि शुध इक सारो जुग लेवो |
हो गंध मनोहर, रतन थार भर, पुंज सुकर मद तज देवो ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।
बहु फूल सुवासं, मधुकर-राशं, करके आसं आवत हैं |
सुरतरु के लावो, पुण्य बढ़ावो, काम-व्यथा नश जावत हैं ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।
पकवान बनाये, बहु घृत लाये, खांड पगाये मिष्ट करे |
मन आनंद धारें, मंत्र उचारें, क्षुधारोग तत्काल टरे ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।
रतनन की जोतं, अति उद्योतं, तम क्षय होतं ज्ञान बढ़े |
अति ही सुख पावे, पाप नशावे, जो मन लावे पाठ पढ़े ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।
चंदन कर्पूरं, अगर सुचूरं, लौंगादिक दशगंध मिला |
वर धूप बनाकर, अगनि-माँहि धर, दुष्टकर्म तत्काल जला ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।
खर्जूर मंगावो, श्रीफल लावो, दाख अनार बदाम खरे |
पुंगीफल प्यारे, मन सुखकारे, अंतराय-विधि दूर करे ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।
जल गंध सुधारा, तंदुल प्यारा, पुष्प चरू ले दीप भली |
दश धूप सुरंगी, फल ले अभंगी, करो अर्घ उर हर्ष रली ||
कलिकुंड सुयंत्रं, पढ़कर मंत्रं, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी |
सब विपति विनाशे, सुख परकाशे, होवे मंगल सुखदानी ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड दंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्य पराक्रमाय सर्व विघ्न विनाशनाय ह्म्ल्व् र्यूं भ्म्ल्व् र्यूं म्म्ल्व् र्यूं र् म्ल्व् र्यूं घ्म्ल्व् र्यूं झ्म्ल्व् र्यूं स्म्ल्व् र्यूं ख्म्ल्व् र्यूं अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।
जयमाला
(छन्द त्रोटक)
सर्वज्ञ परम गुणसागर हैं, तिन पद के हरि सब चाकर हैं |
सब विघ्न विनाशक सुखकर हैं,कलिकुंड सुयंत्र नमूं वर हैं ||१||
नित ध्यान करें जो जन-मन ला, वर पूज रचें कर यंत्र भला |
सब विघ्न विनाशक सुखकर हैं, कलिकुंड सुयंत्र नमूं वर हैं ||२||
तिनके घर ऋद्धि अनेक भरें, मनवाँछित कारज सर्व सरें |
सब विघ्नविनाशक सुखकर हैं, कलिकुंड सुयंत्र नमूं वर हैं ||३||
सुर वंदित हैं तिनके चरणं, उर धर्म बढ़े अघ को हरणं |
सब विघ्न विनाशक सुखकर हैं, कलिकुंड सुयंत्र नमूं वर हैं ||४||
भय चोर अगनि जल साँप मही, सब व्याधि नशें छिन में जु सही |
सब विघ्न विनाशक सुखकर हैं, कलिकुंड सुयंत्र नमूं वर हैं ||५||
सब बंध खुले छिन माँहि लखो, अरि मित्र होंय गुरु साँच अखो |
सब विघ्न विनाशक सुखकर हैं, कलिकुंड सुयंत्र नमूँ वर हैं ||६||
अतिसार संग्रहणी रोग नसें, बंझा नारी लह पुत्र हँसें |
सब विघ्न विनाशक सुखकर हैं, कलिकुंड सुयंत्र नमूँ वर हैं ||७||
सब दूर अमंगल होय जान, सुख संपत दिन-दिन बढ़त मान |
सब विघ्न विनाशक सुखकर हैं, कलिकुंड सुयंत्र नमूं वर हैं ||८||
इस यंत्र की जे पूजा करंत, सुर नर सुख लह हों मुकतिकंत |
सब विघ्न विनाशक सुखकर हैं, कलिकुंड सुयंत्र नमूं वर हैं ||९||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हंकलिकुंडदंड श्रीपार्श्वनाथाय-ध्रणेन्द्र-पद्मावती -सेविताय अतुल बलवीर्य-पराक्रमाय सर्व-विघ्नविनाशनाय जयमाला-पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
जाप्य-मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्रीपार्श्वनाथाय ध्ररणेन्द्र-पद्मावती सेविताय ममेप्सितं कार्य कुरु कुरु स्वाहा||
(गीता छन्द)
नागेंद्र प्रभु के चरण नमते मुकुटप्रभा महा बढ़ी |
बढ़ो पुण्य अपार सब दु:खकार अघ प्रकृति घटी ||
ध्याये श्री कलिकुंड दंड प्रचंड पारसनाथ जी |
तिनकी सुनो जयमाल भविजन कहूँ नवा के माथ जी ||१||
(त्रोटक छंद)
विधि-घाति हनो वर-ज्ञान लह्यो, सब ही पदार्थ को भेद कह्यो |
नित यंत्र नमूं कलिकुंड सार, सब विघ्न विनाशन सुक्खकार ||२||
कुमती वसु मान विनाशत हैं, मुकती का मारग भाषत हैं |
नित यंत्र नमूं कलिकुंड सार, सब विघ्न विनाशन सुक्खकार ||३||
दुर्गति मारग का नाश करे, एकांत-मिथ्यात विवाद हरे |
नित यंत्र नमूं कलिकुंड सार, सब विघ्न विनाशन सुक्खकार ||४||
निराकुल निर्मल शील धरे, निर्मैल मुक्तिलक्ष्मी को वरे |
नित यंत्र नमूं कलिकुंड सार, सब विघ्न विनाशन सुक्खकार ||५||
नहीं क्रोध मान छल लोभ पाप, अष्टादश दोष विमुक्त आप |
नित यंत्र नमूं कलिकुंड सार, सब विघ्न विनाशन सुक्खकार ||६||
हैं अजर अमर गुण के भंडार, सब विघ्न विनाशक परम सार
नित यंत्र नमूं कलिकुंड सार, सब विघ्न विनाशन सुक्खकार ||७||
नागेंद्र नरेंद्र सुरेंद्र आय, नमिहें आनन्दित चित्त लाय |
नित यंत्र नमूं कलिकुंड सार, सब विघ्न विनाशन सुक्खकार ||८||
दिनेंद्र मुनेंद्र निशेन्द्र आय, पूजत नित मन में हर्ष धार |
नित यंत्र नमूं कलिकुंड सार, सब विघ्न विनाशन सुक्खकार ||९||
(घत्ता छन्द)
सब पापनिवारण, संकटटारण, कलिकुंडप्रभु पारस परचंड |
जग में यश पावें, संपति पावें, लहें मुक्ति जो सुख अखंड ||
प्रतिदिन जो वंदें, मन आनंदें, हों बलवंत पाप सब दूर |
सबविघ्न विनाश, लहें सुख संपति, दुष्टकर्म होवें चकचूर ||१०||
श्री पारस स्वामी, अन्तर्यामी, ध्यान लगायो वनमांही |
चर-कमठ जु आयो, क्रोध बढ़ायो, उपसर्ग जु कीनो अधिकार्इ ||
जिन मेरु-समाना, अचल महाना, लख नागेंद्र ने पूज कियो |
फणमंडप कीनो, सुरबल हीनो, है प्रभु को निज-शीश लयो ||११||
(सोरठा)
पूजन ये सुखकार, जे भवि करिहें प्रीतिधर |
विधि बलवंत अपार, हनकर शिवसुख को लहें ||
नोट:- इस पूजा की तीन जाप हैं जो नीचे लिखी हैं-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेंद्र-पद्मावती-सेविताय अतुल-बलवीर्य-पराक्रमाय ममात्मविद्यां रक्ष-रक्ष पर विद्यां छिंद-छिंद भिंद-भिंद स्फ्रां-स्फ्रीं-स्फ्रूं-स्फ्रौं-स्फ्र: हूं फट् स्वाहा ।१।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्रीपार्श्वनाथाय धरणेंद्र-पद्मावती-सेविताय ममेप्सितं कार्यं कुरु-कुरु स्वाहा ।२।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुंड-दंड-स्वामिन्नतुल- बलवीर्य-पराक्रमाय ममात्मविद्यां रक्ष-रक्ष पर विद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद स्फ्रां स्फ्रीं स्फ्रूं स्फ्रौं स्फ्र: हूँ फट् स्वाहा ।३।
।। इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।
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Note
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