शान्ति अपरम्पार है- आनन्द अपार है।
शान्तिनाथ भगवान की आरती बारम्बार है।। शान्ति अप०
पहली आरती पहले पद की, तीर्थंकर पद धारी की।। तीर्थंकर०
वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, छियालीस गुण धारी की।। छियालीस०
शान्ति अपरम्पार है आनन्द अपार है।
दूजी आरती दूजे पद की, चक्रवर्ती पद धारी की।। चक्रवर्ती ०
चौदह रत्न नवो निधि छोड़े, चौरासी लख हाथी जी।। चौरासी०
शान्ति अपरम्पार है आनन्द अपार है।
तीजी आरती तीजे पद की, काम देव पद धारी की।। काम देव०
सहस्त्र छियानवे रानी तजकर, हुए दिगम्बर धारी जी।। हुए दिग०
शान्ति अपरम्पार है आनन्द अपार है।।
कर्म काट सम्मेद शिखर से मुक्ति कंत पदा धारी की।। मुक्ति०
आप तरे, अनगिनत को तारा हमको क्यों न तारो जी।। हमको०
शान्ति अपरम्पार है आनन्द अपार है।।
शान्तिनाथ भगवान की आरती बारम्बार है।।
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Note
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