“स्वर्ग से सुंदर अनुपम है ये जिनवर का दरबार…” एक अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से भरपूर जैन भजन है, जो जिनेंद्र भगवान के दिव्य दरबार की महिमा का गायन करता है। इस भजन में भक्त यह अनुभव करता है कि संसार के सारे वैभव और स्वर्ग की समस्त सुख-संपदाएँ भी भगवान जिनेंद्र के दरबार के सामने तुच्छ हैं।
भजन की भावनाओं में वह आनंद और शांति झलकती है, जो केवल प्रभु के चरणों में प्राप्त होती है। जिनवर का दरबार — जहाँ शुद्धता है, समता है, करुणा है, और आत्मा को उसकी वास्तविक पहचान मिलती है — वह स्थान भक्त के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं होता।
इस भजन को गाते समय साधक का मन प्रभु की भव्य प्रतिमा, शांत वातावरण और मंगलकारी ऊर्जा में डूब जाता है। यह भजन विशेष रूप से मंदिरों में, पूजन, स्वाध्याय, आरती, और धार्मिक आयोजनों में श्रद्धा के साथ गाया जाता है।
Jain Bhajan
(तर्ज – स्वर्ग से सुन्दर सपनो से प्यारा, है अपना घर द्वार…)
स्वर्ग से सुंदर अनुपम है ये जिनवर का दरबार।
श्रद्धा से जो ध्याता निश्चित हो जाता भव पार,
यही श्रद्धान हमारा, नमन हो तुम्हें हमारा ।।टेक।।
कभी न टूटे श्रद्धा, तुम पर भगवान हमारी।
झुक जाएंगी जीवन, में प्रतिकूलता सारी।।
है विश्वास हमारा, इक दिन छूटेगा संसार।।
यही श्रद्धान…।।1।।
निर्वान्छक है भगवन, ये आराधना हमारी।
होवे दशा हमारी, बस जैसी हुई तुम्हारी।।
रत्नत्रय का मार्ग चलेंगे, पाएँ मुक्तिद्वार।।
यही श्रद्धान…।।2।।
स्याद्वाद वाणी ही, भ्रम का अज्ञान मिटाए।
निज गुण पर्यायें ही, अपना परिवार बतायें।।
ना भूलेंगे मुनिराजो का यह अनंत उपकार।।
यही श्रद्धान…।।3।।
लोकालोक झलकते, कैवल्यज्ञान है पाया।
फिर भी शुद्धातम ही, बस उपादेय बतलाया।।
मानो आज मिला मुझको, ये द्वादशांग का सार।।
यही श्रद्धान…।।4।।

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Note
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