uttam satya dharma

मनुष्य अनेक कारणों से असत्य बोला करता है, उनमें से एक तो झूठ बोलने का प्रधान कारण लोभ है। लोभ में आकर मनुष्य अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये असत्य बोला करता है। असत्य भाषण करने का दूसरा कारण भय है। मनुष्य को सत्य बोलने से जब अपने ऊपर कोई आपत्ति आती हुई दिखाई देती है। अथवा अपनी कोई हानि होती दिखती है। उस समय वह डरकर झूठ बोल देता है, झूठ बोलकर वह उस विपत्ति या हानि से बचने का प्रयत्न करता है।
विश्वसनीय और प्रामाणिक वह होता है जिसके हृदय में सरलता हो, आचरण में सच्चाई हो, और मन में सत्य के प्रति निष्ठा हो।
सत्य का मूल सरलता है और असत्य का मूल क्रोध लोभ आदि विकार है।
सत्य ही विश्वास का आधार है।
अप्रिय सत्य और प्रिय झूँठ मत बोलो।

हमें कठोर, कर्कश, मर्मभेदी वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जब भी बोलें हित मित प्रिय वचनों का प्रयोग अपने व्यवहार में लाना चाहिए तथा कहा भी गया है- ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।। कठोर वचन सत्य की श्रेणी में नहीं आते। सत्य का संबंध तो अहिंसा से है।

अहिंसा सत्य को सौंदर्य प्रदान करती है और सत्य ‍अहिंसा की सुरक्षा करता है। अहिंसा रहित सत्य कुरूप है और सत्य रहित अहिंसा क्षणस्थायी है। अहिंसा और सत्य एक सिक्के के दो पहलू है अहिंसा के अभाव में सत्य एवं सत्य के अभाव में अहिंसा की स्थिति नहीं है। नीतिकारों ने कहा है कि सत्य गले का आभूषण है, सत्य से वाणी पवित्र होती है जैसे स्नान करने से शरीर निर्मल हो जाता है।

सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है।

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