दर्शन पच्चीसी(तुम निरखत) || Darshan Pacchisi

दर्शन - पच्चीसी (तुम निरखत)

तुम निरखत मोकों मिली, मेरी सम्पति आज। कहाँ चक्रवति-संपदा कहाँ स्वर्ग-साम्राज ॥१॥ तुम वन्दत जिनदेव जी, नित नव मंगल होय। विघ्न कोटि ततछिन टरैं, लहहि सुजस सब लोय ॥२॥ तुम जाने बिन नाथ जी, एक स्वास के माँहि। जन्म-मरण अठदस किये, साता पाई नाहि ॥३॥ आप बिना पूजत लहे, दुःख नरक के बीच। भूख प्यास … Read more

Mangal Gaan || मंगल गान(आचार्य श्री विधासागर द्वारा रचित)

Acharya Shri Vidhya Sagar Ji Maharaj

मंगल गान (आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी द्वारा रचित) हे ! शान्त सन्त अरहन्त अनन्त ज्ञाता, हे ! शुद्ध-बुद्ध जिन सिद्ध अबद्ध धाता। आचार्यवर्य उवझाय सुसाधु सिन्धु, मैं बार-बार तुम पाद – पयोज बन्दूँ ।। १॥ है मूलमंत्र नवकार सुखी बनाता, जो भी पढ़े विनय से अघ को मिटाता। है आद्य मंगल यही सब मंगलों … Read more

दर्शन – स्तुति (अति पुण्य) || Darshan Stuti

Samuchchay Puja

सखी अति पुण्य उदय मम आया, प्रभु तुमरा दर्शन पाया। अब तक तुमको बिन जाने, दुख पाये निज गुण हाने। हरिगीतिका पाये अनन्ते दुःख अब तक, जगत को निज जानकर। सर्वज्ञ भाषित जगत हितकर, धर्म नहिं पहिचान कर॥ भव बंधकारक सुख प्रहारक, विषय में सुख मानकर। निज पर विवेचक ज्ञानमय, सुखनिधि सुधा नहिं पानकर ॥१॥ … Read more

दर्शन पाठ(दर्शनं देवदेवस्य) || Darshan Paath Sanskrit

दर्शनं देवदेवस्य दर्शनं पापनाशनम्

दर्शनं  देवदेवस्य  दर्शनं  पापनाशनम् दर्शनं स्वर्गसोपानं दर्शनं मोक्षसाधनम् ||१|| दर्शनेन  जिनेन्द्राणां  साधूनां  वन्दनेन च। न चिरं तिष्ठते पापं, छिद्रहस्ते यथोदकम् ॥२॥ वीतराग  मुखं  दृष्ट्वा,  पद्म-राग-  समप्रभम्। जन्म-जन्म कृतं पापं, दर्शनेन विनश्यति ||३|| दर्शनं  जिनसूर्यस्य,  संसारध्वान्त- नाशनम्। बोधनं चित्तपद्मस्य, समस्तार्थ- प्रकाशनम् ||४|| दर्शनं  जिनचन्द्रस्य,  सद्धर्मामृत- वर्षणम्। जन्मदाह विनाशाय, वर्धनं सुखवारिधेः ॥५॥ जीवादितत्त्वप्रतिपादकाय, सम्यक्त्वमुख्याष्ट-गुणार्णवाय’। प्रशान्तरूपाय दिगम्बराय, देवाधिदेवाय … Read more

दर्शन – स्तुति (सकल-ज्ञेय) || Darshan Stuti

Samuchchay Puja

कविवर दौलतराम दोहा सकल-ज्ञेय-ज्ञायक   तदपि   निजानन्द-रस-लीन। सो जिनेन्द्र जयवन्त नित, अरि-रज-रहस-विहीन॥ पद्धरि जय वीतराग-विज्ञान पूर, जय मोह तिमिर को हरन सूर। जय ज्ञान अनन्तानन्त धार, दृग-सुख-वीरज-मण्डित अपार॥ जय परम शान्त मुद्रा समेत, भविजन को निज अनुभूति हेत। भवि भागन बच-जोगे वशाय, तुम धुनि है सुनि विभ्रम नशाय॥ तुम गुण चिन्तत निज-पर-विवेक, प्रगटै, विघटैं आपद अनेक। … Read more

णमोकार महामन्त्र || Namokar Mantra in Hindi Meaning

णमोकार महामन्त्र namokar mantra

Namokar Mantra Hindi Meaning णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं॥ ‘चत्तारि मंगलं अरहंत मंगलं सिद्ध मंगलं साहु मंगलं केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा अरहंत लोगुत्तमा सिद्ध लोगुत्तमा साहु लोगुत्तमा केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि अरहंत सरणं पव्वज्जामि सिद्ध सरणं पव्वज्जामि साहु सरणं पव्वज्जामि केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि। एसो पंच … Read more

जैन स्तोत्र – सुप्रभात स्तोत्रम् || Suprabhat Stotram

Suprabhat Stotram सुप्रभात स्तोत्रम्

शार्दूलविक्रीडितम् यत्स्वर्गावतरोत्सवे यदभवज्जन्माभिषेकोत्सवे,यद्दीक्षाग्रहणोत्सवे यदखिलज्ञानप्रकाशोत्सवे ।यन्निर्वाणगमोत्सवे जिनपतेः, पूजाद्भुतं तद्भवैः,सङ्गीतस्तुतिमङ्गलैः प्रसरतां, मे सुप्रभातोत्सवः ॥१॥ वसन्ततिलकाछन्दः श्रीमन्- नतामर – किरीट-मणिप्रभाभि- रालीढपाद-युग ! दुर्द्धर-कर्मदूर ।श्रीनाभिनन्दन ! जिनाजित! शम्भवाख्य !त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥२॥छत्रत्रय-प्रचल-चामर- वीज्यमान ! देवाभिनन्दनमुने ! सुमते ! जिनेन्द्र ! पद्मप्रभारुणमणि-द्युति-भासुराङ्ग !त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥३॥ अर्हन्! सुपार्श्व! कदली-दलवर्ण-गात्र, प्रालेय-तारगिरि-मौक्तिक-वर्णगौर !चन्द्रप्रभ ! स्फटिक-पाण्डुर-पुष्पदन्त !त्वद्ध्यानतोऽस्तु सततं मम सुप्रभातम् ॥४॥ब्र. … Read more

प्रातः कालीन स्तुति || Prat Kaleen Stuti

प्रातः कालीन स्तुति

प्रातः कालीन स्तुति वीतराग सर्वज्ञ हितङ्कर, भविजन की अब पूरी आश।ज्ञानभानु का उदय करो मम, मिथ्यातम का होय विनाश।।जीवों की हम करुणा पाल, झूठ वचन नहि कह कदा। परधन कबहूँ न हरहूँ स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा।।तृष्णा लोभ बढ़े न हमारा, तोष सुधा नित पिया करें।श्रीजिन धर्म हमारा प्यारा, तिसकी सेवा किया करें।।दूर भगावें बुरी … Read more

श्री मंगलाष्टक स्तोत्रं(अर्थ के साथ) || Shri Mangalashtak Stotram

Samuchchay Puja

श्री पंचपरमेष्ठी वंदन अरिहन्तो-भगवन्त इन्द्रमहिता: सिद्धाश्च सिद्धीश्वरा:,आचार्या: जिनशासनोन्नतिकरा: पूज्या उपाध्यायका:|श्रीसिद्धान्त-सुपाठका: मुनिवरा: रत्नत्रयाराधका:,पंचैते परमेष्ठिन: प्रतिदिनं कुर्वन्तु ते मंगलम्|| श्रीमन्नम्र – सुरासुरेन्द्र – मुकुट – प्रद्योत – रत्नप्रभाभास्वत्पाद – नखेन्दव: प्रवचनाम्भोधीन्दव: स्थायिन:|ये सर्वे जिन-सिद्ध-सूर्यनुगतास्ते पाठका: साधव:,स्तुत्या योगीजनैश्च पंचगुरव: कुर्वन्तु ते मंगलम् ||१||अर्थ- शोभायुक्त और नमस्कार करते हुए देवेन्द्रों और असुरेन्द्रों के मुकुटों के चमकदार रत्नों की कान्ति … Read more