Gomtesh bahubali

ज्ञानोदय तीर्थ (अजमेर)
भारत छन्द -लय-वीर हिमाचल तैं

प्राणत स्वर्ग तजो जिनराज, सु राजगृही प्रभु जन्म लियो है।
श्री सुखमित्र सुमित्र पिता, पद्मा जननी घर धन्य कियो है॥
हे मुनिसुव्रतनाथ जिनेश्वर !, है हृदयांगन देश हमारो ।
भूमि सुनिर्गत हे महिमाधर,!, देर करो नहिं शीघ्र पधारो ॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकर विघ्नहर मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्र ! अत्र-अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । अन मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ।

जिनगीतिका छन्द
जल पान से तृष्णा मिटी ना, नीर प्रभु पद में धरूँ।
जन्मादि रोगों की व्यथा को, आप चरणों में हरूँ ॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए ।
तुम सम निरंजन बन सकूँ मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए ॥
भू गर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे ।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे ॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

चन्दन लगाया देह पर, परिताप नित बढ़ता गया ।
प्रभु पाद में चन्दन रखा तो, ताप नित घटता गया ॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए ।
तुम सम निरंजन बन सकूँ मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए ॥
भूगर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे ।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे ॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। इन्द्रिय सुखों की चाह में प्रभु, दुःख ही सहता रहा।

मिल जाये अक्षय सौख्य मुझको, बस यही कहता यहाँ ॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए।
तुम सम निरंजन बन सकूँ मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए।
भूगर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।

जिनदेव के पद पंकजों को, भक्ति पुष्पों से भजूँ।
मन को रखूँ वश में सदा, दुष्काम को मन से तजूँ॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए ।
तुम सम निरंजन बन सकूँ मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए॥
भू गर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

जड़ वस्तुओं में स्वाद खोजा, आत्म अमृत ना चखा।
अध्यात्म अमृत पान करने, जैन आगम को लखा॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए।
तुम सम निरंजन बन सकूँ मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए।
भू गर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे॥
ॐ ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

श्रुतज्ञान दीपक में अहित तज, आत्महित परहित करूँ।
श्रुतज्ञान दाता आप्त जिन की, दीप ले पूजन करूँ॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए।
तुम सम निरंजन बन सकूँ मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए॥
भू गर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

मोहादि कर्मों को प्रभो, ईंधन बनाया आपने।
सुरभित हुए हो अष्ट गुण से, भक्त महकें आप से॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए।
तुम सम निरंजन बन सकूँ मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए॥
भू गर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।

सद्दृष्टि सम्यग्ज्ञान चारित, एकमय जब हो गये।
तब आप जिन शुभ ध्यान फल से, नित निरंजन हो गये॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए।
तुम सम निरंजन बन सकूँ मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए॥
भू गर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

वसु द्रव्य चरणों में चढ़ाकर, आठवीं वसुधा चहूँ।
सुव्रत जिनेश्वर आप में मिल, आत्म सुख को नित लहूँ॥
तीर्थेश मुनिसुव्रत हमारे, दोष सब हर लीजिए।
तुम सम निरंजन बन सकू मैं, ध्यान मुझ पर दीजिए॥
भूगर्भ से प्रकटे जिनेश्वर, आज सबके उर बसे।
मुनि सुधासागर की कृपा से, तीर्थ ज्ञानोदय लसे॥
ओं ह्रीं भूगर्भ प्रकटित ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्रस्थ महातिशयकराय विघ्नहर श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पंचकल्याणक अर्घ
क्षमासखी छन्द

अलि श्रावण द्वितीया आयी, गरभागम मंगल लायी।
माता पद्मा हरषायी, सब राजगृही सुख पायी ॥
ओं ह्रीं श्रावणकृष्णद्वितीयायां गर्भकल्याणमण्डित श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घं ।

वैशाख कृष्ण दशमी को जन्मे सुख हो अवनी को ।
हरिवंश सुमित्र पिताजी, आंगन सुर टोली नाची ॥
ओं ह्रीं वैशाखकृष्णदशम्यां जन्मकल्याणमण्डित श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घं ।

प्रभु जन्म दिवस तपकारा, गज विराग चित अवधारा ।
इक सहस नृपति तप धारन, नृप वृषभसेन गृह पारण ॥
ओं ह्रीं वैशाखकृष्णदशम्यां तपकल्याणमण्डित श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घं ।

कृष्णा वैशाख नवम दिन, कैवल्य हुआ जग बोधन ।
छद्मस्थ मास ग्यारह थे, उपदेश भव्य जन लहते ॥
ओं ह्रीं वैशाखकृष्णनवम्यां ज्ञानकल्याणमण्डित श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घं।

फाल्गुन कृष्णा द्वादशि को, नमूँ सुव्रत आत्म वशी को।
इक सहस श्रमण निज ध्याते, सम्मेद शीश शिव पाते ॥
ओं ह्रीं फाल्गुनकृष्णद्वादश्यां मोक्षकल्याणमण्डित श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घं।

जयमाला
ज्ञानोदय छंद

हे मुनिसुव्रत दयालु भगवन्, भू से प्रकटे दर्श दिये।
ज्ञानोदय में जिनबिम्बों के, दर्श किये, धर हर्ष हिये ॥ ध्रुव ॥
आप बीसवें तीर्थंकर हो, वीतराग सर्वज्ञ प्रभो !
अष्ट प्रातिर्हायों से मण्डित, चउतिस अतिशय युक्त विभो !
अनंत दर्शन ज्ञान वीर्य सुख, चार गुणों को धार लिये,
हे मुनिसुव्रत दयालु भगवन्, भू से प्रकटे दर्श दिये ॥१॥

मल्लि आदि द्वादश गणधर को, प्रभु तुमने उपदेश दिया,
द्वादश गण के ईश गणीश्वर, भरते ज्ञान प्रदेश हिया ।
हे जिन! तीर्थ तुम्हारा पाकर, रामचन्द्रजी मोक्ष गये,
हे मुनिसुव्रत दयालु भगवन्, भू से प्रकटे दर्श दिये ॥२॥

वर्ष हजारों रहे भूमि में, वीतरागता धार रहे,
आज भूमि से प्रकटित होकर, भव्यजनों को तार रहे।
श्वेत वर्ण सतबीस इंच में, मुनिसुव्रत के दर्श किये,
संयम स्वर्ण महोत्सव पर हम, दर्शन पाकर धन्य हुये ॥३॥

नगर किशनगढ़ अजयमेर के, भक्तों का सौभाग्य फला,
मुनि पुंगव श्रीसुधासिन्धु का, ससंघ वर्षा योग मिला।
तभी भूमि से प्रकटित सुव्रत, पचास जिनवर साथ लिये,
काले हीरे निकष उपल के, जिनबिम्बों के दर्श किये ॥४॥

नगर किशनगढ़ से गजरथ पर, जैन बिम्ब सु विराज गये,
अजयमेर पथ से नारेली, ज्ञानोदय पथ धन्य किये।
विद्या की गुरु दर्शभूमि से, दीक्षास्थल हो सुव्रत गये,
मुनिसुव्रत के श्रीविहार में, समवसरण के दर्श किये ॥५॥

संयम स्वर्ण जयंति वर्ष की, अद्वितीय रथ यात्रा थी,
समवसरण के सम वैभव था, प्रभु गुरुवर की महिमा थी।
वादक पैदल वाद्य बजाते, जिन-आर्मी ध्वज हाथ लिये,
इस जुलूस ने इतिहासों के, रिकार्ड सारे तोड़ दिये ॥६॥

अश्वरथों पर हस्तिरथों पर, वृषभरथों पर राजित थे,
मानवरथ विज्ञान रथों पर, जिनवर बिम्ब विराजित थे।
गजरथ गजों वाहनों पर भी, इन्द्र समूह सवार हुये,
मुनि ससंघ के साथ हजारों, पदयात्री जन साथ हुए ॥७॥

गुरुके तले फलीं संस्कृति की, अनेक छवियाँ साथ चलीं,
मंगल द्रव्य प्रातिहार्यों को लेकर माता बहिन चलीं।
विविध वेषभूषा भेदों में, भक्त भक्ति में रँगे हुये,
दूर दर्शनों पर रथयात्रा, देख देश सब धन्य हुये ॥८॥

पौष शुक्ल पांचे से यात्रा, तीन दिवस में पहुँच गई,
दो हजार सत्रह के सन् में, पौषी सातें धन्य हुई।
ज्ञानोदय में बिम्ब विराजे, पुनः प्रतिष्ठित किये गये,
सुधामहानिष्कं पसिन्धु, गंभीर धैर्य जी प्रणत हुये ॥९॥

पौष पूर्णिमा से षष्ठी तक, मुनिसुव्रत अभिषेक चला,
अमृत हीरक स्वर्ण कलश से, भक्तों को सौभाग्य मिला।
सभी बिम्ब लाखों जल घट से, अभिषिञ्चित हो पूज्य हुये,
हे मुनिसुव्रत दयालु भगवन्, भू से प्रकटे दर्श दिये ॥१०॥

संत शिरोमणि विद्यासागर, मुनि दीक्षा अजमेर मही,
सूरि सुपद की गुरु समाधि की, भूमि नसीराबाद रही।
उस पावन भू पर ज्ञानोदय, तीर्थ क्षेत्र पर ठहर गये।
हे मुनिसुव्रत दयालु भगवन्, भू से प्रकटे दर्श दिये ॥११॥

गुरु के गुरु श्री ज्ञानसागराचार्य जयोदय के कर्त्ता,
शिष्य सूरि विद्यासागर मुनि, काव्य मूकमाटी कर्त्ता।
जिनके शिष्य सुधासागर ने, ज्ञानोदय नव तीर्थ दिये,
हे मुनिसुव्रत! आप जिनेश्वर, शत इन्द्रों से पूज्य हुए।
ज्ञानोदय में जिनबिम्बों के, दर्श किये, धर हर्ष हिये ॥१२॥

श्री मुनिसुव्रत के अतिशय से, अंधबधिर देखें सुनते।
आशा बिन माँ शिशु जीवित हो, पंगु चलें गूंगे पढते।।
गन्धोदक से भव्य जनों के, चर्म रोग भी ठीक हुये।
लकवा कोमा वाले प्राणी गन्धोदक से स्वस्थ हुये ।।१३।।
ओं ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।

ज्ञानोदय में राजते, मुनिसुव्रत गुण गाय ।
मृदु भावों से पूजते, दुख दरिद्रता जाय ॥
। पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।

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Note

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