Samuchchay Puja

कविश्री द्यानतराय
(दोहा)
चहुँगति-फनि-विष-हरन-मणि, दु:ख-पावक जल-धार |
शिव-सुख-सुधा-सरोवरी, सम्यक्-त्रयी निहार ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रय धर्म! अत्र अवतर अवतर संवौषट्! (आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रय धर्म! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रय धर्म! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)

अष्टक (सोरठा छन्द)
क्षीरोदधि उनहार, उज्ज्वल-जल अति-सोहनो |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

Telegram BitsBlaze Deals

चंदन-केसर गारि, परिमल-महा-सुगंधमय |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

तंदुल अमल चितार, बासमती-सुखदास के |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।

महकें फूल अपार, अलि गुंजे ज्यों थुति करें |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय कामबाण- विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

लाडू बहु विस्तार, चीकन मिष्ट सुगंधयुत |
जनम- रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

Telegram BitsBlaze Deals

दीप रतनमय सार, जोत प्रकाशे जगत् में |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

धूप सुवास विथार, चंदन अगर कपूर की |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

फल शोभा अधिकार, लौंग छुहारे जायफल |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

आठ दरब निरधार, उत्तम सों उत्तम लिये |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूँ ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।

Telegram BitsBlaze Deals

सम्यक् दरशन ज्ञान, व्रत शिव-मग तीनों मयी |
पार उतारन यान, ‘द्यानत’ पूजूं व्रत-सहित ||
ॐ ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।१०।

समुच्चय-जयमाला
(दोहा)
सम्यक्दरशन-ज्ञान-व्रत, इन बिन मुकति न होय |
अन्ध पंगु अरु आलसी, जुदे जलें दव-लोय ||१||

Telegram BitsBlaze Deals

(चौपाई 16 मात्रा)
जा पे ध्यान सुथिर बन आवे, ताके करम-बंध कट जावे |
ता सों शिव-तिय प्रीति बढ़ावे, जो सम्यक् रत्नत्रय ध्यावे ||२||

ताको चहुँ-गति के दु:ख नाहीं, सो न परे भवसागर माहीं |
जनम-जरा-मृत दोष मिटावे, जो सम्यक् रत्नत्रय ध्यावे ||३||

सोर्इ दशलच्छन को साधे, सो सोलह कारण आराधे |
सो परमातम-पद उपजावे, जो सम्यक् रत्नत्रय ध्यावे ||४||

सोर्इ शक्र-चक्रिपद लेर्इ, तीन लोक के सुख विलसेर्इ |
सो रागादिक भाव बहावे, जो सम्यक् रत्नत्रय ध्यावे ||५||

सोर्इ लोकालोक निहारे, परमानंद दशा विस्तारे |
आप तिरे औरन तिरवावे, जो सम्यक् रत्नत्रय ध्यावे ||६||

(दोहा)
एक स्वरूप-प्रकाश निज, वचन कह्यो नहिं जाय |
तीन भेद व्योहार सब, ‘द्यानत’ को सुखदाय ||७||
ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्रेभ्य: समुच्चय-जयमाला –पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

*****

Note

Jinvani.in मे दिए गए सभी स्तोत्र, पुजाये और आरती जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here