तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का जीवन परिचय
भगवान श्री अरिष्टनेमी(Bhagwan Neminath) अवसर्पिणी काल के बाईसवें तीर्थंकर हुए। इनसे पूर्व के इक्कीस तीर्थंकरों को प्रागैतिहासिककालीन महापुरुष माना जाता है। आधुनिक युग के अनेक इतिहास विज्ञों ने प्रभु अरिष्टनेमि को एक ऐतिहासिक महापुरुष के रूप में स्वीकार किया है।
भगवान अरिष्टनेमि का जन्म यदुकुल के ज्येष्ठ पुरूष दशार्ह-अग्रज समुद्रविजय की भार्या शिवा देवी की रत्नकुक्षी से श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन हुआ। समुद्रविजय शौर्यपुर के शासक थे। जरासंध से विवाद के कारण समुद्रविजय यदुवंशी परिवार सहित सौराष्ट्र प्रदेश में समुद्र तट के निकट द्वारिका नामक नगरी बसाकर रहने लगे। श्रीकृष्ण के नेतृत्व में द्वारिका को राजधानी बनाकर यदुवंशियों ने महान उत्कर्ष किया।
केवल ज्ञान की प्राप्ति
अंततः एक वर्ष तक वर्षीदान देकर अरिष्टनेमि श्रावण शुक्ल षष्टी को प्रव्रजित हुए। चौपन दिवसों के पश्चात आश्विन कृष्ण अमावस्या को प्रभु केवली बने। देवों के साथ इन्द्रों और मानवों के साथ श्रीकृष्ण ने मिलकर कैवल्य महोत्सव मनाया। प्रभु ने धर्मोपदेश दिया। सहस्त्रों लोगों ने श्रमण-धर्म और सहस्त्रों ने श्रावक-धर्म अंगीकार किया।
भगवान नेमिनाथ का इतिहास
- भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह शंख है।
- जन्म स्थान –शौरीपुरबटेश्वर (उत्तर प्रदेश)
- जन्म कल्याणक – श्रावण शु. ६
- केवल ज्ञान स्थान – सहस्राम्रवन
- दीक्षा स्थान – सहस्राम्रवन
- पिता – महाराजा समुद्र विजय
- माता – महारानी शिवादेवी
- देहवर्ण –वैडूर्यमणि सदृश
- मोक्ष – आषाढ़ शु. ७, ऊर्जयंतपर्वत (गिरनार)
- भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
- लंबाई/ ऊंचाई- १० धनुष (३० मीटर)
- आयु –एक हजार (१०००) वर्ष
- वृक्ष –बांस वृक्ष
- यक्ष – सर्वाण्हदेव
- यक्षिणी – कूष्माण्डी देवी
- प्रथम गणधर – श्री वरदत्त
- गणधरों की संख्या – 11
🙏 नेमिनाथ का निर्वाण
वरदत्त आदि ग्यारह गणधर भगवान के प्रधान शिष्य हुए। प्रभु के धर्म-परिवार में अठारह हजार श्रमण, चालीस हजार श्रमणियां, एक लाख उनहत्तर हजार श्रावक एवं तीन लाख छ्त्तीस हजार श्राविकाएं थीं। आषाढ शुक्ल अष्ट्मी को गिरनार पर्वत से प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया।
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