जैन धर्म में २४ तीर्थंकरों का स्मरण करने के लिए अक्सर उनके नाम, गुण और उनसे जुड़ी विशेष पहचानों का उल्लेख किया जाता है। एक सामान्य मंगलाचरण श्लोक इन सभी को एक साथ नमन करता है। कई स्तोत्रों और भजनों में सीधे २४ तीर्थंकरों के नामों का उल्लेख करते हुए मंगलाचरण किया जाता है। इसका उद्देश्य प्रत्येक तीर्थंकर को व्यक्तिगत रूप से स्मरण कर उनके गुणों को ग्रहण करना है।
मंगलाचरण (चौबीस तीर्थंकर)
उसहमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं , जिणं च चंदप्पहं वंदे ।।
सुविहिं च पुप्फयंतं, सीयल सेयंस वासुपुज्जं च।
विमलमणंत-भयवं धम्मं संतिं च वंदामि ।।
कुंथुं च जिणवरिंदं , अरं च मल्लिं च सुव्वयं च णमिं ।
वंदामि रिट्ठणेमि , तह पासं वड्ढ माणं च ।।
चंदेहि णिम्मलयरा , आइच्चेहिं अहियं पयासंता ।
सायरवरगंभीरा , सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।।
हिन्दी अर्थ
मैं १. ऋषभ, २. अजित, ३. सम्भव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पद्मप्रभु, ७. सुपार्श्व तथा ८. चन्द्रप्रभु को वंदन करता हूँ।
मैं ९. सुविधि (पुष्पदन्त), १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति को वन्दन करता हूँ ।
मैं १७. कुन्थु, १८. अर, १९. मल्लि, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि, २२. अरिष्टनेमि, २३. पार्श्व तथा २४. वर्धमान को वन्दन करता हूं।
चन्द्र से अधिक निर्मल, सूर्य से अधिक प्रकाश करनेवाले, सागर की भाँति गम्भीर सिद्ध भगवान मुझे सिद्धि (मुक्ति) प्रदान करे।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित भक्ति संग्रह ग्रंथ में से संकलित।

मंगलाचरण का महत्व
- निर्विघ्नता: यह किसी भी कार्य के आरंभ में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
- पवित्रता: तीर्थंकरों के गुणों का स्मरण मन और वातावरण को पवित्र करता है।
- प्रेरणा: उनके जीवन और आदर्शों से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन को भी धर्ममय बना सकते हैं।
- शुभता: मंगलाचरण से कार्य में शुभता और सफलता आती है।
- स्मरण: यह तीर्थंकरों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने और उनके उपकारों को याद करने का एक तरीका है।
जैन परंपरा में २४ तीर्थंकरों का मंगलाचरण आध्यात्मिक उत्थान और पवित्रता का प्रतीक है, जो हमें आत्म-कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए शक्ति प्रदान करता है।
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Note
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