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मंगलाचरण (चौबीस तीर्थंकर) | Mangalacharan 24 Thirthankar

उसहमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं , जिणं च चंदप्पहं वंदे ।।
सुविहिं च पुप्फयंतं,‌ सीयल सेयंस वासुपुज्जं च।
विमलमणंत-भयवं धम्मं संतिं च वंदामि ।।
कुंथुं च जिणवरिंदं , अरं च मल्लिं च सुव्वयं च णमिं ।
वंदामि रिट्ठणेमि , तह पासं वड्ढ माणं च ।।
चंदेहि णिम्मलयरा , आइच्चेहिं अहियं पयासंता ।
सायरवरगंभीरा , सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।।
हिन्दी अर्थ
मैं १. ऋषभ, २. अजित, ३. सम्भव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पद्मप्रभु, ७. सुपार्श्व तथा ८. चन्द्रप्रभु को वंदन करता हूँ।
मैं ९. सुविधि (पुष्पदन्त), १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति को वन्दन करता हूँ ।
मैं १७. कुन्थु, १८. अर, १९. मल्लि, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि, २२. अरिष्टनेमि, २३. पार्श्व तथा २४. वर्धमान को वन्दन करता हूं।
चन्द्र से अधिक निर्मल, सूर्य से अधिक प्रकाश करनेवाले, सागर की भाँति गम्भीर सिद्ध भगवान मुझे सिद्धि (मुक्ति) प्रदान करे।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित भक्ति संग्रह ग्रंथ में से संकलित।
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Note

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