मोह जाल में फंसे हुए हैं, कर्मो ने आ घेरा…Jain Bhajan

मोह जाल में फँसे हुये हैं कर्मों ने आ घेरा,

कैसे तिरेंगे भव-सागर से, तुम बिन कौन है मेरा।

भूल हुई क्या हमसे भगवन क्या है दोष हमारा,

लिखा विधाता ने किन घड़ियों ऐसा लेख हमारा।।

लेख लिखा था शुभ घड़ियों में, शुभ घड़ियां हैं आई।

आत्मज्ञान की ज्योति जगा दो भव से पार उतरता है।।

मोह जाल में…

पहले ऋषभनाथ जिन बंदों, दूसरे अजितनाथ देवजी।

तीसरे संभवनाथ जिन बंदों, चौथे अभिनंद देवजी॥

पाचवें सुमतीनाथ जिन बंदों, छठवें पद्मप्रभु देवजी।

सातवें सुपार्श्वनाथ जिन बंदों, आठवें चंद्रदेवजी ।।

मोह जाल में…

नववें पुष्पदंत जिन बंदों, दसवें शीतलनाथ देवजी।

ग्यारवें श्रेयांसनाथ जिन बंदों, बारहवें वासुपूज्य देवजी।।

तेरहवें विमलनाथ जिन बंदों, चौदहवें अनंतनाथ देवजी।

पंद्रहवें धर्मनाथ जिन बंदों, सोलहवें शांतिनाथ देवजी।। 

मोह जाल में…

सतरहवें कुंथूनाथ जिन बंदों, अठारहवें अरहनाथ देवजी।

उन्नीसवें मल्लिनाथ जिन बंदों, बीसवें मुनिसुव्रत देवजी।।

इक्किसवें नमिनाथ जिन बंदों, बाइसवें नेमिनाथ देवजी। 

तेइसवें पार्श्वनाथ जिन बंदों, चोबिसवें महावीर देवजी।। 

मोह जाल में…

Note

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