जैन धर्म का इतिहास
दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है. जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे, इसके प्रवर्तक हैं २४ तीर्थंकर, जिनमें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) तथा अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी हैं। जैन धर्म की अत्यन्त प्राचीनता सिद्ध करने वाले अनेक उल्लेख साहित्य और विशेषकर पौराणिक साहित्यो में प्रचुर मात्रा में हैं। श्वेतांबर व दिगम्बर जैन पन्थ के दो सम्प्रदाय हैं।
‘जिन परम्परा‘ का अर्थ है – ‘जिन द्वारा प्रवर्तित दर्शन’। जो ‘जिन’ के अनुयायी हों उन्हें ‘जैन’ कहते हैं, जैन धर्म अर्थात ‘जिन’ भगवान् का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। इसे बड़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम मे विशेष रुप से देखा जा सकता है। जैन दर्शन में कण-कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ताधर्ता नही है।
जैन धर्म एक प्राचीन भारतीय धर्म है। महावीर स्वामी स्वाभाविक तपस्या और ध्यान की ओर प्रवृत्त हुए थे और उन्होंने आत्मा की मुक्ति के लिए एक निष्कलंक (अशुद्धियों से मुक्त) जीवन का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
जैन धर्म के अनुयायी भगवान महावीर के समेत 24 तीर्थंकरों को मानते हैं, जो सत्य, तप, आचार्य, ब्रह्मचर्य, और अहिंसा के पंच परम व्रतों को अपनाते हैं। महावीर का जन्म जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था।
जैन धर्म के अनुयायी जीवों को अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और सत्य के पंच महाव्रतों का पालन करने का सिखाया जाता है। इस धर्म में बहुत्ववाद का सिद्धांत है और यह मानता है कि सभी जीवों में आत्मा होती है, जिसे निरंतर मुक्ति की दिशा में प्रगट किया जा सकता है।
जैन धर्म का सामाजिक और धार्मिक संगठन बहुत सारे मंदिर, जिनालय और शिक्षा संस्थानों के माध्यम से फैला हुआ है। जैन साहित्य, जैसे कि ‘आगम’ और ‘सिद्धांत’ भी इस धर्म की महत्वपूर्ण स्रोत हैं। जैन तिथियों, विशेषकर पर्वों में, अनुयायियों को धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन करने का आदान-प्रदान होता है।
जैन धर्म भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक सामर्थ्य का हिस्सा है और इसने भारतीय धार्मिकता को अपनी विशेषता और दृष्टिकोण से योगदान दिया है।
जैन धर्म के संप्रदाय क्या हैं?
- जैन व्यवस्था को दो प्रमुख संप्रदायों में विभाजित किया गया है: दिगंबर और श्वेतांबर।
- विभाजन मुख्य रूप से मगध में अकाल के कारण हुआ जिसने भद्रबाहु के नेतृत्व वाले एक समूह को दक्षिण भारत में स्थानांतरित होने के लिये मजबूर किया।
- 12 वर्षों के अकाल के दौरान दक्षिण भारत में समूह सख्त प्रथाओं पर कायम रहा, जबकि मगध में समूह ने अधिक ढीला रवैया अपनाया और सफेद कपड़े पहनना शुरू कर दिया।
- काल की समाप्ति के बाद जब दक्षिणी समूह मगध में वापस आया तो बदली हुई प्रथाओं ने जैन धर्म को दो संप्रदायों में विभाजित कर दिया।
दिगंबर
- इस संप्रदाय के साधु पूर्ण नग्नता में विश्वास करते हैं। पुरुष भिक्षु कपड़े नहीं पहनते हैं जबकि महिला भिक्षु बिना सिलाई वाली सफेद साड़ी पहनती हैं।
- ये सभी पाँच व्रतों (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य) का पालन करते हैं।
- मान्यता है कि औरतें मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं हैं।
- भद्रबाहु इस संप्रदाय के प्रतिपादक थे।
- प्रमुख उप-संप्रदाय:
- मुला संघ
- बिसपंथ
- थेरापंथा
- तरणपंथ या समायपंथा
- लघु उप-समूह:
- गुमानपंथ
- तोतापंथ
श्वेतांबर
- साधु सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
- केवल 4 व्रतों का पालन करते हैं (ब्रह्मचर्य को छोड़कर)।
- इनका विश्वास है कि महिलाएँ मुक्ति प्राप्त कर सकती हैं।
- स्थूलभद्र इस संप्रदाय के प्रतिपादक थे।
- प्रमुख उप-संप्रदाय:
- मूर्तिपूजक
- स्थानकवासी
- थेरापंथी
तीर्थंकर | |
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1 | ऋषभदेव– इन्हें ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है |
2 | अजितनाथ |
3 | सम्भवनाथ |
4 | अभिनंदन |
5 | सुमतिनाथ जी |
6 | पद्मप्रभु जी |
7 | सुपार्श्वनाथ जी |
8 | चंदाप्रभु जी |
9 | सुविधिनाथ– इन्हें ‘पुष्पदन्त’ भी कहा जाता है |
10 | शीतलनाथ जी |
11 | श्रेयांसनाथ |
12 | वासुपूज्य जी |
13 | विमलनाथ जी |
14 | अनंतनाथ जी |
15 | धर्मनाथ जी |
16 | शांतिनाथ |
17 | कुंथुनाथ |
18 | अरनाथ जी |
19 | मल्लिनाथ जी |
20 | मुनिसुव्रत जी |
21 | नमिनाथ जी |
22 | अरिष्टनेमि जी – इन्हें ‘नेमिनाथ‘ भी कहा जाता है। जैन मान्यता में ये नारायण श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। |
23 | पार्श्वनाथ |
24 | वर्धमान महावीर – इन्हें वर्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर भी कहा जाता है। |